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શુક્રવાર, 12 જાન્યુઆરી, 2018

SWAMI VIVEKANAD

Information about various special days coming in January is given here. If you want to get information about these special days for girls in school and for your own knowledge, then study the following post. Information for the great people of India has been published here. Here is the information about Swami Vivekanand who made India proud in the name of India
जनवरी में आने वाले विभिन्न विशेष दिनों के बारे में जानकारी यहां दी गई है। यदि आप स्कूल में लड़कियों और अपने खुद के ज्ञान के लिए इन विशेष दिनों के बारे में जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं, तो निम्नलिखित पोस्ट का अध्ययन करें। भारत के महान लोगों के लिए जानकारी यहां प्रकाशित की गई है। यहां स्वामी विवेकानंद के बारे में जानकारी है जिन्होंने भारत के नाम पर भारत को गर्व किया
Swami Vivekanand - Yuvaday 

Swami vivekanand jayanti  are celebrated as yuva day in March 12. Different programs are organized by the owners in schools and colleges on yuva  day. Swami vivekanand  are given information about the great girls by the children in schools. Children of the great villains who have gone to India and around the world speak up. 


Children also cross the notice board of information of these Swami vivekanand. The information collected about theseSwami Vivekanand is done by cutting a newspaper. All these information also present the children in the school prayer program. Knowing the Great Vivekanand of the Children, those who are studying at the school also develop a new self-confidence, and they also get motivated to set a higher target. The great Person of India
स्वामी विवेकानंद - भारतीय युवा दिन 


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स्वामी विवेकानन्द जन्म 12 जनवरी, 1863 को कलकत्ता (कोलकता) में हुआ। आपके पिता का नाम विश्वनाथ दत्त और माता का नाम भुवनेश्वरी देवी था। सन्यास धारण करने से पहले आपका नाम नरेन्द्रनाथ दत्त था व आप नरेन के नाम से भी जाने जाते थे।
आपका परिवार धनी, कुलीन और उदारता व विद्वता के लिए विख्यात था । विश्वनाथ दत्त कोलकाता उच्च न्यायालय में अटॅार्नी-एट-लॉ (Attorney-at-law) थे व कलकत्ता उच्च न्यायालय में वकालत करते थे। वे एक विचारक, अति उदार, गरीबों के प्रति सहानुभूति रखने वाले, धार्मिक व सामाजिक विषयों में व्यवहारिक और रचनात्मक दृष्टिकोण रखने वाले व्यक्ति थे । भुवनेश्वरी देवी सरल व अत्यंत धार्मिक महिला थीं ।
आपके पिता पाश्चात्य सभ्यता में विश्वास रखते थे। वे अपने पुत्र नरेन्द्र को भी अँग्रेजी पढ़ाकर पाश्चात्य सभ्यता के ढर्रे पर चलाना चाहते थे। नरेन्द्र की बुद्धि बचपन से तीव्र थी और परमात्मा में व अध्यात्म में ध्यान था। इस हेतु आप पहले ‘ब्रह्म समाज' में गये किन्तु वहाँ आपके चित्त संतुष्ट न हुआ। इस बीच आपने कलकत्ता विश्वविद्यालय से बी.ए उत्तीर्ण कर ली और कानून की परीक्षा की तैयारी करने लगे। इसी समय में आप अपने धार्मिक व अध्यात्मिक संशयों की निवारण हेतु अनेक लोगों से मिले लेकिन कहीं भी आपकी शंकाओं का समाधान न मिला। एक दिन आपके एक संबंधी आपको रामकृष्ण परमहंस के पास ले गये।
स्वामी रामकृष्ण परमहंस ने नरेन्द्रदत्त को देखते ही पूछा, "क्या तुम धर्म विषयक कुछ भजन गा सकते हो?"
नरेन्द्रदत्त ने कहा, "हाँ, गा सकता हूँ।"
फिर नरेन ने दो-तीन भजन अपने मधुर स्वरों में गाए। आपके भजन से स्वामी परमहंस अत्यंत प्रसन्न हुए। तभी से नरेन्द्रदत्त स्वामी परमहंस का सत्संग करने लगे और उनके शिष्य बन गए। अब आप वेदान्त मत के दृढ़ अनुयायी बन गए थे।
16 अगस्त 1886 को स्वामी परमहंस परलोक सिधार गये।
1887 से 1892 के बीच स्वामी विवेकानन्द अज्ञातवास में एकान्तवास में साधनारत रहने के बाद भारत-भ्रमण पर रहे।
आप वेदान्त और योग को पश्चिम संस्कृति में प्रचलित करने के लिए महत्वपूर्ण योगदान देना चाहते थे।
स्वामी विवेकानंद वेदान्त के विख्यात और प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरु थे। उनका वास्तविक नाम नरेन्द्र नाथ दत्त था। आपने अमेरिका स्थित शिकागो में 1893 में आयोजित विश्व धर्म महासभा में भारत की ओर से सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व किया था। भारत का वेदान्त अमेरिका और यूरोप के हर एक देश में स्वामी विवेकानन्द के कारण ही पहुँचा। आपने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की जो आज भी अपना काम कर रहा है। आप स्वामी रामकृष्ण परमहंस के सुयोग्य व प्रतिभावान शिष्य थे। आपको अमरीका में दिए गए अपने भाषण की शुरुआत "मेरे अमेरिकी भाइयों एवं बहनों" के लिए जाना जाता है ।
निधन: 4 जुलाई, 1902 को आप परलोक सिधार गये।
शिकांगों संभाषण :-
स्वामी विवेकानंद ने 11 सितंबर 1893 को शिकागो (अमेरिका) में हुए विश्व धर्म सम्मेलन में एक बेहद चर्चित भाषण दिया था। विवेकानंद का जब भी जि़क्र आता है उनके इस भाषण की चर्चा जरूर होती है। पढ़ें विवेकानंद का यह भाषण...
अमेरिका के बहनो और भाइयो,

आपके इस स्नेहपूर्ण और जोरदार स्वागत से मेरा हृदय अपार हर्ष से भर गया है। मैं आपको दुनिया की सबसे प्राचीन संत परंपरा की तरफ से धन्यवाद देता हूं। मैं आपको सभी धर्मों की जननी की तरफ से धन्यवाद देता हूं और सभी जाति, संप्रदाय के लाखों, करोड़ों हिन्दुओं की तरफ से आपका आभार व्यक्त करता हूं। मेरा धन्यवाद कुछ उन वक्ताओं को भी जिन्होंने इस मंच से यह कहा कि दुनिया में सहनशीलता का विचार सुदूर पूरब के देशों से फैला है। मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे धर्म से हूं, जिसने दुनिया को सहनशीलता और सार्वभौमिक स्वीकृति का पाठ पढ़ाया है। हम सिर्फ सार्वभौमिक सहनशीलता में ही विश्वास नहीं रखते, बल्कि हम विश्व के सभी धर्मों को सत्य के रूप में स्वीकार करते हैं।
मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे देश से हूं, जिसने इस धरती के सभी देशों और धर्मों के परेशान और सताए गए लोगों को शरण दी है। मुझे यह बताते हुए गर्व हो रहा है कि हमने अपने हृदय में उन इस्त्राइलियों की पवित्र स्मृतियां संजोकर रखी हैं, जिनके धर्म स्थलों को रोमन हमलावरों ने तोड़-तोड़कर खंडहर बना दिया था। और तब उन्होंने दक्षिण भारत में शरण ली थी। मुझे इस बात का गर्व है कि मैं एक ऐसे धर्म से हूं, जिसने महान पारसी धर्म के लोगों को शरण दी और अभी भी उन्हें पाल-पोस रहा है। भाइयो, मैं आपको एक श्लोक की कुछ पंक्तियां सुनाना चाहूंगा जिसे मैंने बचपन से स्मरण किया और दोहराया है और जो रोज करोड़ों लोगों द्वारा हर दिन दोहराया जाता है: जिस तरह अलग-अलग स्त्रोतों से निकली विभिन्न नदियां अंत में समुद में जाकर मिलती हैं, उसी तरह मनुष्य अपनी इच्छा के अनुरूप अलग-अलग मार्ग चुनता है। वे देखने में भले ही सीधे या टेढ़े-मेढ़े लगें, पर सभी भगवान तक ही जाते हैं।वर्तमान सम्मेलन जोकि आज तक की सबसे पवित्र सभाओं में से है, गीता में बताए गए इस सिद्धांत का प्रमाण है: जो भी मुझ तक आता है, चाहे वह कैसा भी हो, मैं उस तक पहुंचता हूं। लोग चाहे कोई भी रास्ता चुनें, आखिर में मुझ तक ही पहुंचते हैं।
सांप्रदायिकताएं, कट्टरताएं और इसके भयानक वंशज हठधमिर्ता लंबे समय से पृथ्वी को अपने शिकंजों में जकड़े हुए हैं। इन्होंने पृथ्वी को हिंसा से भर दिया है। कितनी बार ही यह धरती खून से लाल हुई है। कितनी ही सभ्यताओं का विनाश हुआ है और न जाने कितने देश नष्ट हुए हैं।
अगर ये भयानक राक्षस नहीं होते तो आज मानव समाज कहीं ज्यादा उन्नत होता, लेकिन अब उनका समय पूरा हो चुका है। मुझे पूरी उम्मीद है कि आज इस सम्मेलन का शंखनाद सभी हठधर्मिताओं, हर तरह के क्लेश, चाहे वे तलवार से हों या कलम से और सभी मनुष्यों के बीच की दुर्भावनाओं का विनाश करेगा।
स्वामी विवेकानंद के अनमोल वचन :-
  • "उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत।" अर्थात् उठो, जागो, और ध्येय की प्राप्ति तक रूको मत।
  • मैं सिर्फ और सिर्फ प्रेम की शिक्षा देता हूं और मेरी सारी शिक्षा वेदों के उन महान सत्यों पर आधारित है जो हमें समानता और आत्मा की सर्वत्रता का ज्ञान देती है।
  • सफलता के तीन आवश्यक अंग हैं-शुद्धता,धैर्य और दृढ़ता। लेकिन, इन सबसे बढ़कर जो आवश्यक है वह है प्रेम।
  • हम ऐसी शिक्षा चाहते हैं जिससे चरित्र निर्माण हो। मानसिक शक्ति का विकास हो। ज्ञान का विस्तार हो और जिससे हम खुद के पैरों पर खड़े होने में सक्षम बन जाएं।
  • खुद को समझाएं, दूसरों को समझाएं। सोई हुई आत्मा को आवाज दें और देखें कि यह कैसे जागृत होती है। सोई हुई आत्मा के का जागृत होने पर ताकत, उन्नति, अच्छाई, सब कुछ आ जाएगा।
  • मेरे आदर्श को सिर्फ इन शब्दों में व्यक्त किया जा सकता हैः मानव जाति देवत्व की सीख का इस्तेमाल अपने जीवन में हर कदम पर करे।
  • शक्ति की वजह से ही हम जीवन में ज्यादा पाने की चेष्टा करते हैं। इसी की वजह से हम पाप कर बैठते हैं और दुख को आमंत्रित करते हैं। पाप और दुख का कारण कमजोरी होता है। कमजोरी से अज्ञानता आती है और अज्ञानता से दुख।
  • अगर आपको तैतीस करोड़ देवी-देवताओं पर भरोसा है लेकिन खुद पर नहीं तो आप को मुक्ति नहीं मिल सकती। खुद पर भरोसा रखें, अडिग रहें और मजबूत बनें। हमें इसकी ही जरूरत है।

* स्वामीजी के उपदेशों का सूत्रवाक्य, "उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत" कठोपनिषद् के   एक मंत्र से प्रेरित है:

   उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत ।
   क्षुरस्य धारा निशिता दुरत्यया दुर्गं पथस्तत्कवयो वदन्ति ।।
   (कठोपनिषद्, अध्याय १, वल्ली ३, मंत्र १४)
जिसका अर्थ है - उठो, जागो, और जानकार श्रेष्ठ पुरुषों के सान्निध्य में ज्ञान प्राप्त करो । विद्वान् मनीषी जनों का कहना है कि ज्ञान प्राप्ति का मार्ग उसी प्रकार दुर्गम है जिस प्रकार छुरे के पैना किये गये धार पर चलना ।
प्रेरक प्रसंग :-
डर से भागो मत, उसका सामना करो
स्‍वामी विवेकानंद का कहना था कि डर से भागने के बजाए उसका सामना करना चाहिए. एक बार बनारस में वे दुर्गा जी के मंदिर से निकल रहे थे कि तभी वहां मौजूद बहुत सारे बंदरों ने उन्हें घेर लिया. बंदर उनके नजदीक आकर उन्‍हें डराने लगे. विवेकानंद जी खुद को बचाने के लिए भागने लगे, लेकिन बंदरों ने उनका पीछा नहीं छोड़ा. पास खड़ा एक वृद्ध सन्यासी ये सब देख रहा था. उसने स्वामी विवेकानंद को रोका और बोला, 'रुको! उनका सामना करो.' विवेकानंद जी तुरंत पलटे और बंदरों की तरफ बढ़ने लगे. फिर क्‍या था सारे बंदर भाग गए. इस घटना से स्वामी जी को सीख मिली और कई सालों बाद उन्होंने एक संबोधन में कहा भी, 'यदि तुम कभी किसी चीज से भयभीत हो, तो उससे भागो मत, पलटो और सामना करो.'
दूसरों के पीछे भागने के बजाए, अपनी मंजिल खुद बनाओ
स्‍वामी विवेकानंद हमेशा कहते थे कि सफलता पाने के लिए किसी दूसरे के पीछे भागने से कुछ हासिल नहीं होगा. सफलता तभी म‍िलती है जब आप अपनी मंजिल तक पहुंचने के लिए अपना रास्‍ता खुद ही बनाते हो. एक बार एक व्यक्ति स्वामी जी से बोला, 'काफी मेहनत के बाद भी मैं सफल नहीं हो पा रहा.' स्वामी जी बोले, 'तुम मेरे कुत्ते को सैर करा लाओ.' जब वह वापस आया तो कुत्ता थका हुआ था और उसका चेहरा चमक रहा था. स्वामी जी ने कारण पूछा तो उसने बताया, 'कुत्ता गली के कुत्तों के पीछे भाग रहा था, जबकि मैं सीधे रास्ते चल रहा था.' स्वामी जी बोले, 'यही तुम्हारा जवाब है. तुम अपनी मंजिल पर जाने के बजाय दूसरों के पीछे भागते रहते हो.'

पाने से ज्‍यादा बड़ा है देने का आनंद
स्‍वामी विवेकानंद जी का मानना था कि समाज के उत्‍थान में सभी को योगदान देना चाहिए. हमेशा अपना भला सोचने के बजाए किसी न किसी रूप में समाज को भी कुछ देना चाहिए. भ्रमण और भाषणों से थके हुए स्वामी विवेकानंद अपने निवास स्थान पर लौटे. उन दिनों वे अमेरिका में एक महिला के यहां ठहरे हुए थे. वो खुद अपना खाना बनाते थे. एक दिन वे भोजन की तैयारी कर रहे थे कि कुछ बच्चे पास आकर खड़े हो गए. बच्चे भूखे थे. स्वामी जी ने अपनी सारी रोटियां एक-एक कर बच्चों में बांट दी. महिला वहीं बैठी सब देख रही थी. आखिर उससे रहा नहीं गया और उसने स्वामी जी से पूछ ही लिया, 'आपने सारी रोटियां उन बच्चों को दे डाली, अब आप क्या खाएंगे?' स्वामी जी ने मुस्‍कुरा कर कहा, 'मां, रोटी तो पेट की ज्वाला शांत करने वाली वस्तु है. इस पेट में न सही, उस पेट में ही सही.' देने का आनंद पाने के आनंद से बड़ा होता है.

सादा जीवन जीना सीखें
स्वामी विवेकानंद हमेशा सादा जीवन जीने के पक्षधर थे. वह हमेशा भौतिक साधनों से दूर रहने के लिए दूसरों को प्रेरित करते थे. उनका मानना था कि कुछ हासिल करने के लिए आपको पहले चीजों का त्याग करना चाहिए और सादा जीवन जीना चाहिए. भैतिकवादी सोच आपको लालची बनाती है और इसी वजह से आप अपने लक्ष्य से भटक सकते हैं. एक बार जब स्वामी विवेकानन्द जी विदेश गए तो उनके भगवा वस्त्र और पगड़ी देख कर लोगों ने पूछा, 'आपका बाकी सामान कहां है?'
लक्ष्य पर ध्यान लगाओ
स्वामी विवेकानंद अमेरिका में भ्रमण कर रहे थे। एक जगह से गुजरते हुए उन्होंने पुल पर खड़े  कुछ लड़कों को नदी में तैर रहे अंडे के छिलकों पर बन्दूक से निशाना लगाते देखा। किसी भी लड़के का एक भी निशाना सही नहीं लग रहा था।  तब उन्होंने ने एक लड़के से बन्दूक ली और खुद निशाना लगाने लगे। 
उन्होंने पहला निशाना लगाया और वो बिलकुल सही लगा। फिर एक के बाद एक उन्होंने कुल 12 निशाने लगाये और सभी बिलकुल सटीक लगे।  ये देख लड़के दंग रह गए और उनसे पूछा, "भला आप ये कैसे कर लेते हैं ?"
स्वामी जी बोले, "तुम जो भी कर रहे हो अपना पूरा दिमाग उसी एक काम में लगाओ। अगर तुम निशाना लगा रहे हो तो तम्हारा पूरा ध्यान सिर्फ अपने लक्ष्य पर होना चाहिए।  तब तुम कभी चूकोगे नहीं। अगर तुम अपना पाठ पढ़ रहे हो तो सिर्फ पाठ के बारे में सोचो। मेरे देश में बच्चों को ये करना सिखाया जाता है।"
सच बोलने की हिम्मत
स्वामी विवेकानंद प्रारंभ से ही एक मेधावी छात्र थे और सभी उनके व्यक्तित्व और वाणी से प्रभावित  रहते थे। जब वो साथी छात्रों से कुछ बताते तो सब मंत्रमुग्ध हो उन्हें सुनते। एक दिन इंटरवल के दौरान वो कक्षा में कुछ मित्रों को कहानी सुना रहे थे, सभी उनकी बातें सुनने में इतने मग्न थे की उन्हें पता ही नहीं चला की कब मास्टर जी कक्षा में आये और पढ़ाना शुरू कर दिया।
मास्टर जी ने अभी पढ़ना शुरू ही किया था कि उन्हें कुछ फुसफुसाहट सुनाई दी। "कौन बात कर रहा है ?" उन्होंने तेज आवाज़ में पूछा। सभी ने स्वामी जी और उनके साथ बैठे छात्रों किई तरफ इशारा कर दिया।
मास्टर जी तुरंत क्रोधित हो गए, उन्होंने तुरंत उन छात्रों को बुलाया और पाठ से संबधित एक प्रश्न पूछने लगे। जब कोई भी उत्तर न दे सका, तब अंत में मास्टर जी ने स्वामी जी से भी वही प्रश्न किया। पर स्वामी जी तो मानो सब कुछ पहले से ही जानते हों, उन्होंने आसानी से उत्तर दे दिया।
यह देख उन्हें यकीन हो गया कि स्वामी जी पाठ पर ध्यान दे रहे थे और बाकी छात्र बातचीत में लगे हुए थे। फिर क्या था उन्होंने स्वामी जी को छोड़ सभी को बेंच पर खड़े होने की सजा दे दी। सभी छात्र एक-एक कर बेंच पर खड़े होने लगे, स्वामी जे ने भी यही किया।
तब मास्टर जी बोले,  "नरेन्द्र (स्वामी विवेकानंद )) तुम बैठ जाओ।" "नहीं सर , मुझे भी खड़ा होना होगा क्योंकि वो मैं ही था जो इन छात्रों से बात कर रहा था." ,स्वामी जी ने आग्रह किया।

Swami Vivekananda was born on 12 January 1863 in Kolkata (Kolkata). Your father's name was Vishwanath Dutt and mother's name was Bhuvaneshwari Devi. Before attaining Sanyak, your name was Narendranath Datta and you were also known as Naren.
Your family was renowned for wealthy, noble and generous and scholarly. Vishwanath Dutt was an attorney-at-law in the Calcutta High Court and Calcutta used to advocate in the High Court. He was a thinker, very generous, sympathetic towards the poor, having a practical and constructive attitude in religious and social subjects. The Bhubaneswar Devi was a simple and extremely religious woman.
Your father used to believe in Western civilization. He also wanted to teach his son Narendra as an English teacher and walk on the path of Western civilization. Narendra's intellect was intensified from childhood and meditation was in meditation and spirituality. For this you went to 'Brahma Samaj' before, but your mind was not satisfied there. Meanwhile, you passed BA from Calcutta University and started preparing for the examination of the law. In the meantime, you met many people to get rid of your religious and spiritual doubts, but your doubts were not resolved anywhere. One day one of your relatives took you to Ramkrishna Paramhans.
Swami Ramkrishna Paramahansa asked Narendrudatta, "Can you sing some hymn about religion?"
Narendra said, "Yes, I can sing."
Then Narain sings two or three psalms in their melodious tone. Swami Paramhansa was very pleased with your hymn. From then on, the lord of the lord Lord Paramahansa started doing satsang and became his disciple. Now you have become the strong follower of Vedanta vote.
On August 16, 1886 Swami Paramhans passed away.
Between 1887 and 1892, Swami Vivekananda stayed on a tour of India after living in solitary confinement.
You wanted to make Vedanta and Yoga important contributions to popularize in Western culture.
Swami Vivekananda was a noted and influential spiritual master of Vedanta. His real name was Narendranath Dutt. You represented Sanatan Dharma on behalf of India in the World Congress General Assembly held in 1893 in Chicago-based Chicago. Vedanta of India reached every country of America and Europe only because of Swami Vivekananda. You established the Ramakrishna Mission which is still doing its work today. You were the capable and talented disciple of Swami Ramkrishna Paramahansa. You are known for the introduction of "America's American brothers and sisters" in America.
DIED: On 4th of July, 1902 you went to Sidolak.
Shikings Conversation: -
Swami Vivekananda gave a very prominent speech on September 11, 1893 at the World Religions Conference in Chicago (America). Whenever Vivekananda arrives, it is definitely a discussion of this speech. Read Vivekananda's speech ...
American sisters and brothers,

My heart is filled with great affection from you with this warm and warm welcome. I thank you from the world's oldest saint tradition. I thank you from the mother of all the religions and express my gratitude to millions of castes, sects, millions of Hindus. Thanks to some of those speakers who said on this forum that the idea of ​​tolerance in the world is spreading from the Far East countries. I am proud that I am from a religion that has taught the world the patience and tolerance of universal acceptance. We do not believe in universal tolerance only, but we accept all religions of the world as truth.
I am proud that I am from a country which has sheltered the troubled and persecuted people of all the countries and religions of this earth. I am proud to say that we have kept the sacred memories of the Israelites in our hearts, whose religious places have been broken by the Roman aggressors and made the ruins. And then he took shelter in south India. I am proud of the fact that I am from a religion that has sheltered the people of great Parsi religion and is still nurturing them. Brothers, I would like to recite a few lines of one verse that I have remembered and repeated from childhood and which is repeated every day by millions of people: As the different streams from different sources finally get into the sea, In the same way, man chooses different routes according to his wish. They may look straight or crooked, but they go only to God. The current conference which is one of the most sacred gatherings of all time, is the evidence of this principle described in the Gita: Whatever comes to me, Whatever it is, I reach it. Whether people choose any path, they reach me only at the end.
Communalities, fanatics and its horrific descendants, have been holding the Earth in their scales for a long time. He has filled the earth with violence. How many times has the earth redened with blood? How many civilizations have been destroyed and how many countries have been destroyed.
If this were not a terrible monster, then the human society would have been more advanced today, but now its time has been completed. I sincerely hope that the conjunction of today's conference will destroy all the dogmas, every kind of suffering, whether they are by sword or by the pen and the malice among all humans.
Swami Vivekananda's precious words: -
"Excellent wake-up attribution." That is, do not wait until you get up, wake up, and achieve the goal.
I just taught love and just love

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