Breaking

સોમવાર, 29 જાન્યુઆરી, 2018

Festival - Viswa karma

According to Hindu religion, Lord Vishwakarma is said to be the God of creation and creation. It is believed that Lord Vishwakarma had only constructed IndraPuri, Dwarka, Hastinapur, Paradise Lok, Lanka etc. On this day specially the tools, machines and all ..
हिन्दू धर्म के अनुसार भगवान विश्वकर्मा निर्माण एवं सृजन के देवता कहे जाते हैं। माना जाता है कि भगवान विश्वकर्मा ने ही इन्द्रपुरी, द्वारिका, हस्तिनापुर, स्वर्ग लोक, लंका आदि का निर्माण किया था। इस दिन विशेष रुप से औजार, मशीन तथा सभी ..

https://breducationcorner.blogspot.com/
The birth anniversary of Lord Vishwakarma, the unique master of architecture, is celebrated every year throughout the country. But in some parts it is celebrated on the second day of Deepawali.
Vishwakarma jayanti is celebrated with great fanfare in our country. On this day, in various states of the country, especially
Worship is done in industrial areas, factories, iron shop, vehicle showroom, service center etc. On this spot
Machines, tools are cleaned and painted. On this day, most of the factories are closed and people worship Lord Vishwakarma with euphoria. In the states of Uttar Pradesh, Bihar, West Bengal, Karnataka, Delhi etc, the grand statue of Lord Vishwakarma is established and they are worshiped. What is recognized as recognition is that in the ancient times, as many capitals were made, all Vishwakarma itself is said to be made. Even the 'Paradise Lok' of Satyuga, 'Lanka' of Treta era, Dwarka's 'Dwarka' and Kalyug's 'Hastinapur' are written by Vishwakarma. It is also said about the composition of 'Sudamapuri' that its creator was Vishwakarma. It implies that men who want wealth and happiness and prosperity, worshiping Baba Vishwakarma is necessary and plausible. How did Lord Vishwakarma originate, according to one legend, in the beginning of creation, 'Narayan' Vishnu appeared on Lord Shiva in the Seemandhra. Charramukh Brahma was becoming visible from his navel-lotus. Brahma's son 'Dharma' and the son of religion were 'Vaastudev'. It is said that 'Vaastu', originated from a woman named Dharma, was the seventh son, who was the originator of Shilpaksha. Vishwakarma was born of the same Vatududev's wife, Angirasi. Vishwakarma, like a father, has become the unique teacher of architecture. Many forms of Lord Vishwakarma's Lord Vishwakarma are said to be - two Bahu ones, four brahmus and ten brahians and one face, four faces and Panchmukh ones. He has five sons named Manu, Moy, Vaishta, Shilpi, and Naavijn. It is also believed that these five Vaastu crafts were proficient in different streams and they invented many objects. In this context, Manu is linked with iron, then to mud, timber, bronze and copper, sculpture brick and oracle, with gold and silver. The legend on Vishwakarma is a story to establish the importance of Lord Vishwakarma. According to this, a rathak who lived with religious behavior in Varanasi was with his wife. Skillful in his work, but he could not get more money from food than he could while roaming in different places. Like husband, wife was worried due to not being a son. They used to go to the saints and saints for attaining the son, but this desire could not be fulfilled. Then a neighboring Brahmin told Rathak's wife that you go to Lord Vishwakarma's refuge, your wish will be fulfilled and fast on the date of Amavasya and listen to Lord Vishwakarma Mahatmya. After this Rathakar and his wife worshiped Lord Vishwakarma for the new moon, which earned him wealth and son's gems and started living a happy life. This worship is very important in North India.
Learn what is the worship method of Lord Vishwakarma and the yajna is done by special law. Its method is that the Yajnagar wife sitting in the place of worship. After this, Vishnu meditates on God. After that, floral in hand, read the mantra, and spell it all around. Tie the knuckles and wife in your hand. Leave in the flower jalapathra. After this, meditate Lord Vishwakarma in the heart. Burn the lamp, take flowers and flowers with water and make a resolution. Ashtaad made a lotus on the pure land. Add water to it. After this, put Panchpallav, Saptum Mantika, Supari, Dakshina kalash and make clothes unshielded towards the Kalash. Dedicate a devotee full of rice and establish Vishwakarma Baba statue and call upon Varun Dev. It should be said in a bouquet - 'O Vishvakarmaji, please live in this idol and accept my worship'. Thus after worshiping various types of tools and instruments etc. worship the Yajna.
Vedas, in Upanishads, the saga of Lord Vishwakarma's worship
1. We will observe our ancient texts Upanishad and Puran etc., and we will find that Vishwakarma Shilpi has been worshiped and venerated by humans, but also by the people of Devgnan because of their specific knowledge and science.
2. It is believed that the construction of the Pushpak aircraft and the objects in the buildings of all Gods and their daily use are also made by them. Karna of Karna, Sudarshan Chakra of Vishnu God, Trishul of Shankar Bhagwan and Yama Raj Kadanda etc. have been created by Lord Vishwakarma.
3. Our scriptures and texts describe the five forms and incarnations of Vishvakarma. Virat Vishwakarma, Dharmavanshi Vishwakarma, Angiravanshi Vishwakarma, Sudhnava Vishwakarma and Bhrungavanshi Vishwakarma.
4. Lord Vishwakarma's eldest son was Manu Rishi. He was married to Angira Rishi's daughter Kanchana. They have created human creation. In their total fire, Sarvukhukh, Brahma, etc. the sage has arisen.
5. Vishwakarma are valid as Vedic deities, but their mythical form appears different. From the earliest times, there has been a sense of respect for Vishwakarma. He is considered as the creator and promoter of essential facilities for an institution like a householder. He is the first person of creation

वास्तुकला के अद्वितीय आचार्य भगवान विश्वकर्मा की जयंती देशभर में प्रत्येक वर्ष को मनाया जाता है. लेकिन कुछ भागों में इसे दीपावली के दूसरे दिन भी मनाया जाता है.
हमारे देश में विश्वकर्मा जयंती बडे़ धूमधाम से मनाई जाती है. इस दिन देश के विभिन्न राज्यों में, खासकर
औद्योगिक क्षेत्रों, फैक्ट्रियों, लोहे की दुकान, वाहन शोरूम, सर्विस सेंटर आदि में पूजा होती है. इस मौके पर
मशीनों, औजारों की सफाई एवं रंगरोगन किया जाता है. इस दिन ज्यादातर कल-कारखाने बंद रहते हैं औरलोग हर्षोल्लास के साथ भगवान विश्वकर्मा की पूजा करते है.उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक, दिल्ली आदि राज्यों में भगवान विश्वकर्मा की भव्य मूर्ति स्थापित की जाती है और उनकी आराधना की जाती है. क्या है मान्यता कहा जाता है कि प्राचीन काल में जितनी राजधानियां थी, प्राय: सभी विश्वकर्मा की ही बनाई कही जाती हैं. यहां तक कि सतयुग का 'स्वर्ग लोक', त्रेता युग की 'लंका', द्वापर की 'द्वारिका' और कलयुग का 'हस्तिनापुर' आदि विश्वकर्मा द्वारा ही रचित हैं. 'सुदामापुरी' की तत्क्षण रचना के बारे में भी यह कहा जाता है कि उसके निर्माता विश्वकर्मा ही थे. इससे यह आशय लगाया जाता है कि धन-धान्य और सुख-समृद्धि की अभिलाषा रखने वाले पुरुषों को बाबा विश्वकर्मा की पूजा करना आवश्यक और मंगलदायी है.कैसे हुई भगवान विश्वकर्मा की उत्पत्ति  एक कथा के अनुसार सृष्टि के प्रारंभ में सर्वप्रथम 'नारायण' अर्थात साक्षात विष्णु भगवान सागर में शेषशय्या पर प्रकट हुए. उनके नाभि-कमल से चर्तुमुख ब्रह्मा दृष्टिगोचर हो रहे थे. ब्रह्मा के पुत्र 'धर्म' तथा धर्म के पुत्र 'वास्तुदेव' हुए. कहा जाता है कि धर्म की 'वस्तु' नामक स्त्री से उत्पन्न 'वास्तु' सातवें पुत्र थे, जो शिल्पशास्त्र के आदि प्रवर्तक थे. उन्हीं वास्तुदेव की 'अंगिरसी' नामक पत्नी से विश्वकर्मा उत्पन्न हुए. पिता की भांति विश्वकर्मा भी वास्तुकला के अद्वितीय आचार्य बने अनेक रूप हैं भगवान विश्वकर्मा के भगवान विश्वकर्मा के अनेक रूप बताए जाते हैं- दो बाहु वाले, चार बाहु एवं दस बाहु वाले तथा एक मुख, चार मुख एवं पंचमुख वाले. उनके मनु, मय, त्वष्टा, शिल्पी एवं दैवज्ञ नामक पांच पुत्र हैं. यह भी मान्यता है कि ये पांचों वास्तु शिल्प की अलग-अलग विधाओं में पारंगत थे और उन्होंने कई वस्तुओं का आविष्कार किया. इस प्रसंग में मनु को लोहे से, तो मय को लकड़ी, त्वष्टा को कांसे एवं तांबे, शिल्पी ईंट और दैवज्ञ को सोने-चांदी से जोड़ा जाता है. विश्वकर्मा पर प्रचलित कथा भगवान विश्वकर्मा की महत्ता स्थापित करने वाली एक कथा है. इसके अनुसार वाराणसी में धार्मिक व्यवहार से चलने वाला एक रथकार अपनी पत्नी के साथ रहता था. अपने कार्य में निपुण था, परंतु विभिन्न जगहों पर घूम-घूम कर प्रयत्न करने पर भी भोजन से अधिक धन नहीं प्राप्त कर पाता था. पति की तरह पत्नी भी पुत्र न  होने के कारण चिंतित रहती थी. पुत्र प्राप्ति के लिए वे साधु-संतों के यहां जाते थे, लेकिन यह इच्छा उसकी पूरी न हो सकी. तब एक पड़ोसी ब्राह्मण ने रथकार की पत्नी से कहा कि तुम भगवान विश्वकर्मा की शरण में जाओ,  तुम्हारी इच्छा पूरी होगी और अमावस्या तिथि को व्रत कर भगवान विश्वकर्मा महात्म्य को सुनो. इसके बाद रथकार एवं उसकी पत्नी ने अमावस्या को भगवान विश्वकर्मा की पूजा की, जिससे उसे धन-धान्य और पुत्र रत्न  की प्राप्ति हुई और वे सुखी जीवन व्यतीत करने लगे. उत्तर भारत में इस पूजा का काफी महत्व है. 
जानें क्या है पूजन विधि भगवान विश्वकर्मा की पूजा और यज्ञ विशेष विधि-विधान से होता है. इसकी विधि यह है कि यज्ञकर्ता पत्नी सहित पूजा स्थान में बैठे. इसके बाद विष्णु भगवान का ध्यान करे. तत्पश्चात् हाथ में पुष्प, अक्षत लेकर मंत्र पढ़े और चारों ओर अक्षत छिड़के. अपने हाथ में रक्षासूत्र बांधे एवं पत्नी को भी बांधे. पुष्प जलपात्र में छोड़े. इसके बाद हृदय में भगवान विश्वकर्मा का ध्यान करें. दीप जलायें, जल के साथ पुष्प एवं सुपारी लेकर संकल्प करें. शुद्ध भूमि पर अष्टदल कमल बनाए. उस पर जल डालें. इसके बाद पंचपल्लव, सप्त मृन्तिका, सुपारी, दक्षिणा कलश में डालकर कपड़े से कलश की तरफ अक्षत चढ़ाएं. चावल से भरा पात्र समर्पित कर विश्वकर्मा बाबा की मूर्ति स्थापित करें और वरुण देव का आह्वान करें. पुष्प चढ़ाकर कहना चाहिए- ‘हे विश्वकर्माजी, इस मूर्ति में विराजिए और मेरी पूजा स्वीकार कीजिए’. इस प्रकार पूजन के बाद विविध प्रकार के औजारों और यंत्रों आदि की पूजा कर हवन यज्ञ करें.
वेद, उपनिषदों में है भगवान विश्वकर्मा के पूजन की गाथा
1. हम अपने प्राचीन ग्रंथो उपनिषद एवं पुराण आदि का अवलोकन करें तो पायेगें कि आदि काल से ही विश्वकर्मा शिल्पी अपने विशिष्ट ज्ञान एवं विज्ञान के कारण ही न मात्र मानवों अपितु देवगणों द्वारा भी पूजित और वंदित है.
2. माना जाता है कि पुष्पक विमान का निर्माण तथा सभी देवों के भवन और उनके दैनिक उपयोग में होने वाली  वस्तुएं भी इनके द्वारा ही बनाया गया है. कर्ण का कुण्डल, विष्णु भगवान का सुदर्शन चक्र, शंकर भगवान का त्रिशूल और यमराज का कालदण्ड इत्यादि वस्तुओं का निर्माण भगवान विश्वकर्मा ने ही किया है.
3. हमारे धर्मशास्त्रों और ग्रथों में विश्वकर्मा के पांच स्वरुपों और अवतारों का वर्णन है. विराट विश्वकर्मा, धर्मवंशी विश्वकर्मा, अंगिरावंशी विश्वकर्मा, सुधन्वा विश्वकर्म और भृंगुवंशी विश्वकर्मा.
4. भगवान विश्वकर्मा के सबसे बडे पुत्र मनु ऋषि थे. इनका विवाह अंगिरा ऋषि की कन्या कंचना के साथ हुआ था. इन्होंने मानव सृष्टि का निर्माण किया है. इनके कुल में अग्निगर्भ, सर्वतोमुख, ब्रम्ह आदि ऋषि उत्पन्न हुये है.
5. विश्वकर्मा वैदिक देवता के रूप में मान्य हैं, किंतु उनका पौराणिक स्वरूप अलग प्रतीत होता है. आरंभिक काल से ही विश्वकर्मा के प्रति सम्मान का भाव रहा है. उनको गृहस्थ जैसी संस्था के लिए आवश्यक सुविधाओं का निर्माता और प्रवर्तक माना गया है. वह सृष्टि के प्रथम सूत्रधार कहे गए हैं.
6. विष्णुपुराण के पहले अंश में विश्वकर्मा को देवताओं का देव-बढ़ई कहा गया है तथा शिल्पावतार के रूप में सम्मान योग्य बताया गया है. यही मान्यता अनेक पुराणों में आई है, जबकि शिल्प के ग्रंथों में वह सृष्टिकर्ता भी कहे गए हैं. स्कंदपुराण में उन्हें देवायतनों का सृष्टा कहा गया है. कहा जाता है कि वह शिल्प के इतने ज्ञाता थे कि जल पर चल सकने योग्य खड़ाऊ तैयार करने में समर्थ थे.
7. विश्व के सबसे पहले तकनीकी ग्रंथ विश्वकर्मीय ग्रंथ ही माने गए हैं. विश्वकर्मीयम ग्रंथ इनमें बहुत प्राचीन  माना गया है, जिसमें न केवल वास्तुविद्या बल्कि रथादि वाहन और रत्नों पर विमर्श है. ‘विश्वकर्माप्रकाश’ विश्वकर्मा के मतों का जीवंत ग्रंथ है. विश्वकर्माप्रकाश को वास्तुतंत्र भी कहा जाता है. इसमें मानव और देववास्तु विद्या को गणित के कई सूत्रों के साथ बताया गया है, ये सब प्रामाणिक और प्रासंगिक हैं.

ટિપ્પણીઓ નથી:

ટિપ્પણી પોસ્ટ કરો

thank you for comment

whatsaap

Join WhatsApp Group Join Now