संत रविदास (संत रोहिदास) !! Sant Ravidas (Rohitdas)
Guru Ravi Das was born on February 25, 1433 i.e. 1378 CE, in the village of Magh Purnima, in a Chamar family in the place called Sergovardhanpur or Manavangarh near Banaras on Sunday. A post in the Radadi community, "Fourteen hundred seventy-five, Magh Sudi Pundras The welfare of the afflicted interest, Pragte Siri Ravidas "- confirms his date of birth.
One more promising post "Fifteen hundred thirty four fours are serious. According to him, if he died in Vikram Samvat 1584, he had been martyred as per the body of Goddess Kanchan Bhai Ravi Milo Sareer.
Ravidas's father's name was Raghuram and mother's name was Karma Devi. His grandfather's name was Haryanand and grandmother's name was Chator Kaur. In the posts compiled in the gurudrintha sahab, the mention of Radadas Chamar is repeated and repeated.
"Ravi Das, Khalsa Chamara. Which is our Sahari Mitu, our "
Meaning - that is, "I am a lonely whirl, what I speak or think like myself is awake like me and my friend"
Guru Ravidas was a revolutionary great poet, who through his speech and thoughts attacked the Brahminical system and shook its foundation, hence the Brahmins declared Ravi Das as a miraculous personality and to mention his biography in order to save his culture. Doing a lot of false and fabricated incidents and suppressing their revolutionary and scientific ideas. Tried it. For example, to remove the bracelet from their stamina, to rinse your body, to give birth to a child, due to being a Brahmin in his ancestral state, refusing to accept breast feeding of his mother since the time of his birth.
Clearly, connecting all these unscientific things with the life of Ravidas, Brahmins strengthened the Hinduism by eliminating Ravidas from revolutionary-logical education by pushing them into superstition and imagination.
Significantly, it is said in the male book of Rigveda that Brahmin, Kshatriyya, Vaishya and Shudra are born from the mouth of Brahma. This formula is also the basis of casteism. But Guru Ravidas rejected this false statement altogether, saying:
"Brahmin Khatri, Vaas Sood is not born. Joe Chih Subaran Kau, Pāo Karman Mahi "
That is, the birthplace of Brahmin, Kshatriyya, Vaishya and Shudra are anti-society. On the basis of birth no one is knowledgeable, strong and wealthy, but the person is superior and devious with his actions.
Ravidas further says -
"Ravi Das Ek Brahma Ka, Hoi Rahyo Sagal Paste. All the people, all the heads,
That is, all the creatures in the world are created from the same soil. The creator of all this is the same. That is, the body of all human beings is the same and all of them also originate from one point. In this case, what is the basis of the distinction between Brahmin and Shudra?
Describing the damage caused by classicalism, Ravidas says, "People of the caste and the other people are getting upset. Manusata kooka hai, Ravidas going to get disease "
That is, the whole society has become very complex in the life of caste and religion. Everyone is entangled in the caste network and they have made their thinking very narrow. Leaving no place for humanity. This caste disease has destroyed humanity.
These words of Ravidas have emerged in the 'Enlightenment of Cast' speech prepared by Dr. Babasaheb Ambedkar in the nineteenth century. Where the humanity's Messiah Dr. Ambedkar p. 56 says, "The caste has destroyed the public consciousness, the caste has crushed the welfare in people. Kindness, love, sympathy, impatience, limited only to its caste, all this starts only with its own caste and ends with its own race "
Even Guru Ravidas used to say, cautioning the society-
"Being in the caste, which is Kelan's father. Ravidas can not manush Jude, who does not go away "
Meaning- The way in which the leaves of banana leaves the second, and then the third and endless leaves begin, in the same way classified inequality arising out of caste has no place for humanity.
Moving forward to the views of Ravidas, Dr. Ambedkar stressed the need for joint dinner and inter-caste marriage to destroy the caste system.
As Dr. Ambedkar Mahaprabhu, "The Untouchable" Nanaka dedicated his book to Guru Ravidas.
Guru Ravidas remained a lifelong pilgrim and a guide, he believed that every thing in the world is eternal, it is transitory, that is, all things have to go one day. So why not put this body into the society? According to him, considering anything right should be considered by examining the criteria of intelligence. He emphasized the importance of labor and remained active in the propagation of lifelong scientific-humanism, but it is a matter of great sadness that today people know more about Ravidas than his ideas and his miracles.
The cruel death of Sant Ravidas (Saint Rohidas) was dead.
His followers need time to walk in the stream of rituals initiated by saint Shiromani Rohidas. Otherwise, the existence of the saint Shiromani Rohidas Maharaj will not take time. Wake up ... make a true follower.
Ravi Das (Sant Rohidas), the world's first saint, to present the principle of equality !!
Jai Sant Rohidas !!
Articles - Dr. Vijay Kumar
गुरु रविदास का जन्म २५ फरवरी १४३३ यानि १३७६ ईसा में माघ पूर्णिमा, दिन रविवार को बनारस के नज़दीक सीरगोवर्धनपुर अथवा मांडूर्गढ़ नामक स्थान में एक चमार परिवार में हुआ था. रैदासी समुदाय में प्रचिलित एक पद “चौदह सौ तेंतीस को, माघ सुदी पन्दरास. दुखियों के कल्याण हित, प्रगटे सिरी रविदास”- उनकी इस जन्मतिथि की पुष्टि करता है.
वहीँ एक और रैदासी पद “पन्द्रह सौ चौरासी भई चित्तोर मह्भीर. जर-जर देह कंचन भई रवि मिल्यो सरीर” के अनुसार विक्रम संवत १५८४ में वे शहीद हुए थे.
रविदास के पिता का नाम रघुराम और माता का नाम करमा देवी था. इनके पितामह का नाम हरियानंद था और दादी का नाम चतर कौर. गुरुग्रंथ साहब में संकलित पदों में रैदास के चमार होने का उल्लेख बार-बार आया है.
“कही रविदास, खालसा चमारा. जो हम सहरी मीतु हमारा”
अर्थ- यानि “मैं खालिस चमार हूँ, जो मैं मेरे जैसे बोलता या सोचता है वह मेरे जैसा जागृत है है और मेरा मित्र है”
गुरु रविदास एक क्रांतिकारी महाकवि थे, जिन्होंने अपनी वाणी और विचार के माध्यम से ब्राह्मणवादी व्यवस्था पर करारे प्रहार करते हुए इसकी नींव हिला दी थी इसलिए ब्राह्मणवादियों ने अपनी संस्कृति को बचाने के लिए उल्टा रविदास को ही चमत्कारी व्यक्तित्व घोषित कर दिया और उनके जीवनी का उल्लेख करते हुए बहुत सी झूठी और मनगढंत घटनाएं गढ़कर उनके क्रांतिकारी और वैज्ञानिक विचारों को दबाने का कुत्सित प्रयास किया. जैसे- उनका कठौते से कंगन निकालना, अपने शरीर को चीर कर जनेऊ दीखाना, अपने पूर्वजन्म में ब्राह्मण होने के कारण अपनी पैदाइश के समय से ही अपनी चमार माँ का स्तनपान पान करने से इनकार करना आदि.
जाहिर है इन सब अवैज्ञानिक बातों को रविदास के जीवन से जोड़कर ब्राह्मणवादियों ने दलित-बहुजनों को रविदास की क्रांतिकारी-तार्किक शिक्षा से दूर कर उन्हें अंधविश्वास और कल्पनालोक में धकेल कर हिंदूवाद को सफलता से मज़बूत किया.
गौरतलब है कि ऋग्वेद के पुरुषसुक्त में कहा गया है कि ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र का जन्म ब्रह्मा के मुख से हुआ है. यह सूत्र ही जातिवाद का आधार भी है. पर गुरु रविदास ने इस झूठी बात को सिरे से नकारते हुए कहा-
“ब्राह्मण खतरी, वैस सूद जनम ते नाही. जो चाइह सुबरन कउ, पावै करमन माहि”
अर्थात, ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र का जन्मगत आधार समाज विरोधी है. जन्म के आधार पर कोई प्रज्ञावान, बलवान और धनवान नहीं होता, बल्कि व्यक्ति अपने कर्म से श्रेष्ठ और निकृष्ट होता है.
रविदास आगे कहते हैं -
“रविदास एके ब्रह्म का, होई रह्यो सगल पसार. एके माटी सब सजरे, एके सभ कूं सिरजनहार”
अर्थात, संसार के सारे प्राणी एक ही मिट्टी से निर्मित हैं. इस सब का रचनाकार भी एक ही है. अर्थात सभी मानव का शरीर एक ही जैसा है और सभी की उत्पत्ति भी एक बिंदु से होती है. ऐसे में ब्राह्मण और शूद्र के भेद का भला क्या आधार है.
वर्णवाद से होने वाले नुकसान को बताते हुए रविदास कहते हैं “जात-पांत के फेर महि, उरझी रही सभ लोग. मानुषता कूं खात हई, रविदास जात कर रोग”
अर्थात जात-पांत के चक्कर में सारा समाज ही जटिल हो चूका है. सब लोग जाति के जाल में उलझे हुए हैं और उन्होंने अपनी सोच एकदम संकीर्ण बना रखी है. जिससे मानवता के लिए कोई जगह नहीं बची. इस जाति रुपी रोग ने मनुष्यता को नष्ट कर डाला है.
रविदास के ये शब्द उन्नीसवीं सदी में डॉ बाबासाहेब आम्बेडकर द्वारा तैयार भाषण ‘एन्हीलेशन ऑफ कास्ट’ में उभरे है. जहाँ मानवता के मसीहा डॉ आंबेडकर पृ. ५६ में कहते हैं “जाति ने जन-चेतना को नष्ट कर डाला है, जाति ने लोगों में कल्याणकारी भावों को कुचल दिया. दया, प्रेम सहानुभूति, अपनत्व जैसे भावों को केवल अपनी जाति में ही सीमित कर दिया यह सब केवल अपनी जाति से ही शुरू होता है और अपनी जाति के साथ ही खत्म हो जाता है”
गुरु रविदास भी तो समाज को आगाह करते हुए कहा करते थे-
“जात-पांत में जात है, जो केलन की पात. रविदास न मानुष जुड सकैं, जो लौ जात न जात”
अर्थ- यानि जिस प्रकार केले के एक पत्ते के बाद दूसरा और फिर तीसरा और अंतहीन पत्तों का सिलसिला शुरू हो जाता है उसी प्रकार जाति से उत्पन्न वर्गीकृत असमानता से मानवता के लिए कोई जगह नहीं बचती.
रविदास के विचारों को आगे बढाते हुए डॉ आंबेडकर ने जाति व्यवस्था को समूल नष्ट करने के लिए सहभोज और अंतरजातीय विवाह की आवश्यकता पर बल दिया था.
डॉ आंबेडकर जैसें महापुरुषने "द अनटचेबल" नानका अपना ग्रंथ गुरु रविदास यांना समर्पित कीया था.
गुरु रविदास आजीवन पथिक और पथप्रदर्शक बने रहे, उनका स्पष्ट मानना था कि संसार की प्रत्येक वस्तु अनित्य है, क्षणभंगुर है यानि सभी चीज़ों को एक दिन जाना ही है. इसलिए क्यों न इस शरीर को समाज के निर्माण में लगाया जाए. उनके अनुसार किसी बात को ठीक से सोच विचार कर बुद्धि की कसौटी पर परख कर ही मानना चाहिए. उन्होंने श्रम की महत्ता पर अत्यधिक बल दिया और आजीवन वैज्ञनिक-मानववाद के प्रचार में सक्रीय रहे पर बड़े दुःख कि बात है कि आज लोग रविदास को उनके विचारों से कम और उनके चमत्कारों के लिए अधिक जानते हैं.
संत रविदास (संत रोहिदास) जी का गुढ मृत्यु हुआ था.
संत शिरोमणी रोहीदासनी चालविलेल्या कर्मकांड मुक्तीच्या विचार प्रवाहात त्यांच्या अनुयायांनी चालणे काळाची गरज आहे. अन्यथा संत शिरोमणी रोहिदास महाराजांचे अस्तित्व नष्ट होण्यास काहीच कालावधी लागणार नाही. जागे व्हा... सच्चा अनुयायी बना.
समानतेचे तत्व मांडणारे जगातील पहिले संत रविदास (संत रोहिदास) !!
जय संत रोहिदास !!
गुरु रविदास का जन्म २५ फरवरी १४३३ यानि १३७६ ईसा में माघ पूर्णिमा, दिन रविवार को बनारस के नज़दीक सीरगोवर्धनपुर अथवा मांडूर्गढ़ नामक स्थान में एक चमार परिवार में हुआ था. रैदासी समुदाय में प्रचिलित एक पद “चौदह सौ तेंतीस को, माघ सुदी पन्दरास. दुखियों के कल्याण हित, प्रगटे सिरी रविदास”- उनकी इस जन्मतिथि की पुष्टि करता है.
वहीँ एक और रैदासी पद “पन्द्रह सौ चौरासी भई चित्तोर मह्भीर. जर-जर देह कंचन भई रवि मिल्यो सरीर” के अनुसार विक्रम संवत १५८४ में वे शहीद हुए थे.
रविदास के पिता का नाम रघुराम और माता का नाम करमा देवी था. इनके पितामह का नाम हरियानंद था और दादी का नाम चतर कौर. गुरुग्रंथ साहब में संकलित पदों में रैदास के चमार होने का उल्लेख बार-बार आया है.
“कही रविदास, खालसा चमारा. जो हम सहरी मीतु हमारा”
अर्थ- यानि “मैं खालिस चमार हूँ, जो मैं मेरे जैसे बोलता या सोचता है वह मेरे जैसा जागृत है है और मेरा मित्र है”
गुरु रविदास एक क्रांतिकारी महाकवि थे, जिन्होंने अपनी वाणी और विचार के माध्यम से ब्राह्मणवादी व्यवस्था पर करारे प्रहार करते हुए इसकी नींव हिला दी थी इसलिए ब्राह्मणवादियों ने अपनी संस्कृति को बचाने के लिए उल्टा रविदास को ही चमत्कारी व्यक्तित्व घोषित कर दिया और उनके जीवनी का उल्लेख करते हुए बहुत सी झूठी और मनगढंत घटनाएं गढ़कर उनके क्रांतिकारी और वैज्ञानिक विचारों को दबाने का कुत्सित प्रयास किया. जैसे- उनका कठौते से कंगन निकालना, अपने शरीर को चीर कर जनेऊ दीखाना, अपने पूर्वजन्म में ब्राह्मण होने के कारण अपनी पैदाइश के समय से ही अपनी चमार माँ का स्तनपान पान करने से इनकार करना आदि.
जाहिर है इन सब अवैज्ञानिक बातों को रविदास के जीवन से जोड़कर ब्राह्मणवादियों ने दलित-बहुजनों को रविदास की क्रांतिकारी-तार्किक शिक्षा से दूर कर उन्हें अंधविश्वास और कल्पनालोक में धकेल कर हिंदूवाद को सफलता से मज़बूत किया.
गौरतलब है कि ऋग्वेद के पुरुषसुक्त में कहा गया है कि ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र का जन्म ब्रह्मा के मुख से हुआ है. यह सूत्र ही जातिवाद का आधार भी है. पर गुरु रविदास ने इस झूठी बात को सिरे से नकारते हुए कहा-
“ब्राह्मण खतरी, वैस सूद जनम ते नाही. जो चाइह सुबरन कउ, पावै करमन माहि”
अर्थात, ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र का जन्मगत आधार समाज विरोधी है. जन्म के आधार पर कोई प्रज्ञावान, बलवान और धनवान नहीं होता, बल्कि व्यक्ति अपने कर्म से श्रेष्ठ और निकृष्ट होता है.
रविदास आगे कहते हैं -
“रविदास एके ब्रह्म का, होई रह्यो सगल पसार. एके माटी सब सजरे, एके सभ कूं सिरजनहार”
अर्थात, संसार के सारे प्राणी एक ही मिट्टी से निर्मित हैं. इस सब का रचनाकार भी एक ही है. अर्थात सभी मानव का शरीर एक ही जैसा है और सभी की उत्पत्ति भी एक बिंदु से होती है. ऐसे में ब्राह्मण और शूद्र के भेद का भला क्या आधार है.
वर्णवाद से होने वाले नुकसान को बताते हुए रविदास कहते हैं “जात-पांत के फेर महि, उरझी रही सभ लोग. मानुषता कूं खात हई, रविदास जात कर रोग”
अर्थात जात-पांत के चक्कर में सारा समाज ही जटिल हो चूका है. सब लोग जाति के जाल में उलझे हुए हैं और उन्होंने अपनी सोच एकदम संकीर्ण बना रखी है. जिससे मानवता के लिए कोई जगह नहीं बची. इस जाति रुपी रोग ने मनुष्यता को नष्ट कर डाला है.
रविदास के ये शब्द उन्नीसवीं सदी में डॉ बाबासाहेब आम्बेडकर द्वारा तैयार भाषण ‘एन्हीलेशन ऑफ कास्ट’ में उभरे है. जहाँ मानवता के मसीहा डॉ आंबेडकर पृ. ५६ में कहते हैं “जाति ने जन-चेतना को नष्ट कर डाला है, जाति ने लोगों में कल्याणकारी भावों को कुचल दिया. दया, प्रेम सहानुभूति, अपनत्व जैसे भावों को केवल अपनी जाति में ही सीमित कर दिया यह सब केवल अपनी जाति से ही शुरू होता है और अपनी जाति के साथ ही खत्म हो जाता है”
गुरु रविदास भी तो समाज को आगाह करते हुए कहा करते थे-
“जात-पांत में जात है, जो केलन की पात. रविदास न मानुष जुड सकैं, जो लौ जात न जात”
अर्थ- यानि जिस प्रकार केले के एक पत्ते के बाद दूसरा और फिर तीसरा और अंतहीन पत्तों का सिलसिला शुरू हो जाता है उसी प्रकार जाति से उत्पन्न वर्गीकृत असमानता से मानवता के लिए कोई जगह नहीं बचती.
रविदास के विचारों को आगे बढाते हुए डॉ आंबेडकर ने जाति व्यवस्था को समूल नष्ट करने के लिए सहभोज और अंतरजातीय विवाह की आवश्यकता पर बल दिया था.
डॉ आंबेडकर जैसें महापुरुषने "द अनटचेबल" नानका अपना ग्रंथ गुरु रविदास यांना समर्पित कीया था.
गुरु रविदास आजीवन पथिक और पथप्रदर्शक बने रहे, उनका स्पष्ट मानना था कि संसार की प्रत्येक वस्तु अनित्य है, क्षणभंगुर है यानि सभी चीज़ों को एक दिन जाना ही है. इसलिए क्यों न इस शरीर को समाज के निर्माण में लगाया जाए. उनके अनुसार किसी बात को ठीक से सोच विचार कर बुद्धि की कसौटी पर परख कर ही मानना चाहिए. उन्होंने श्रम की महत्ता पर अत्यधिक बल दिया और आजीवन वैज्ञनिक-मानववाद के प्रचार में सक्रीय रहे पर बड़े दुःख कि बात है कि आज लोग रविदास को उनके विचारों से कम और उनके चमत्कारों के लिए अधिक जानते हैं.
संत रविदास (संत रोहिदास) जी का गुढ मृत्यु हुआ था.
संत शिरोमणी रोहीदासनी चालविलेल्या कर्मकांड मुक्तीच्या विचार प्रवाहात त्यांच्या अनुयायांनी चालणे काळाची गरज आहे. अन्यथा संत शिरोमणी रोहिदास महाराजांचे अस्तित्व नष्ट होण्यास काहीच कालावधी लागणार नाही. जागे व्हा... सच्चा अनुयायी बना.
समानतेचे तत्व मांडणारे जगातील पहिले संत रविदास (संत रोहिदास) !!
जय संत रोहिदास !!संत शिरोमणी रोहीदासनी चालविलेल्या कर्मकांड मुक्तीच्या विचार प्रवाहात त्यांच्या अनुयायांनी चालणे काळाची गरज आहे. अन्यथा संत शिरोमणी रोहिदास महाराजांचे अस्तित्व नष्ट होण्यास काहीच कालावधी लागणार नाही. जागे व्हा... सच्चा अनुयायी बना.
समानतेचे तत्व मांडणारे जगातील पहिले संत रविदास (संत रोहिदास) !!
Very veey good info of guru rohidas ji thanks
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