Breaking

સોમવાર, 22 જાન્યુઆરી, 2018

Vasant Panchami


https://breducationcorner.blogspot.com/
This year, Basant Panchami festival is celebrated on January 22 throughout the country. According to the Hindu calendar, this festival is celebrated on the fifth day of the Shukla party of the month of Magh. It is believed that on the fifth day of the spring, the Goddess Saraswati appeared on earth. Mother Saraswati left all the creatures on earth as a victim of sorrow. So why mother Saraswati is believed to be the goddess of knowledge, music, art and intellect. The festival of Vasant Panchami is celebrated on the occasion of his birth and the Saraswati Devi is worshiped.
On the fifth day of the fifth year of worship, Goddess Saraswati is worshiped because Saraswati Devi has created voice after everyone's creation. It is believed that the creator Brahma was created by humans and humans, but then Brahma was not satisfied. Because the sorrow was on every side of the earth. Then Brahma ji, with the permission of Lord Vishnu, sprinkled some water drops on the earth with its body. Brahmagya falls in the dust of the earth. This huge four-headed goddess was Saraswati. Mother Saraswati had a harp, the other was in posture. Apart from this, there were books and beads on the other side.

Brahma requested Veena to play with Saraswati, along with four-face goddess. With the music of the Goddess, all the creatures in the world get the sound. Saraswati Devi gave knowledge and knowledge to living creatures. That is why every house Saraswati is worshiped on the eve of spring Panchami. In other words Basant Panchami's second name is Saraswati Puja. Mother Saraswati is believed to be the god of education and wisdom.

Students, writers and artists worship idols, pens, and instruments against the idol of Saraswati Devi across the country. People bath natural water sources, bubbles and waterfalls, wear yellow clothes, and worship in temples. Yellow rice, yellow laddus and saffron milk are used for worship. According to Skanda Purana it is better to worship Goddess Saraswati with white flowers, moon, white cloth. For the worship of Mother Saraswati, it is useful to mention Rhetoric Root Mantra "Shreeday Sarasvatya Swah". The same night, after incense and lamps, 108 times after the worship of Saraswati and worship of Goddess goddess.

इस वर्ष देशभर में बसंत पंचमी का त्योहार 22 जनवरी को मनाया जा रहा है। यह त्योहार हिंदू कैलेंडर के हिसाब से माघ मास के शुक्ल पक्ष के पांचवे दिन मनाया जाता है। मान्यता है कि बसंत पंचमी के दिन देवी सरस्वती पृथ्वी पर प्रगट हुई थीं। माता सरस्वती ने पृथ्वी पर उदासी को खत्म कर सभी जीव-जंतुओं को वाणी दी थी। इसलिए माता सरस्वती को ज्ञान-विज्ञान, संगीत, कला और बुद्धि की देवी भी माना जाता है। उन्हीं के जन्म के उत्सव पर वसंत पचंमी का त्योहार मनाया जाता है और सरस्वती देवी की पूजा की जाती है।
बसंत पंचमी के दिन देवी सरस्वती की पूजा इसलिए की जाती है क्योंकि सृष्टि की रचना के बाद सरस्वती देवी ने सभी को वाणी दी थी। माना जाता है कि सृष्टि रचियता ब्रह्मा ने जीवों और मनुष्यों की रचना की थी, लेकिन इसके बाद भी वह ब्रह्मा जी संतुष्ट नहीं थे। क्योंकि पृथ्वी पर हर तरफ उदासी छाई हुई थी। तब ब्रह्मा जी ने विष्णु भगवान की अनुमति लेकर अपने कमंडल से जल की कुछ बूंदे पृथ्वी पर छिड़की। ब्रह्मा जी के कमंडल से धरती पर गिरने वाली बूंदों से एक प्राकट्य हुआ। यह प्राकट्य चार भुजाओं वाली देवी सरस्वती का था। माता सरस्वती के एक हाथ में वीणा थी, दूसरा हाथ वर मुद्रा में था। इसके अलावा बाकी अन्य हाथों में पुस्तक और माला थी।
ब्रह्मा ने चार भुजा वाली देवी सरस्वती से वीणा बजाने का अनुरोध किया। देवी के वीणा बजाने के साथ-साथ संसार के सभी जीव-जन्तुओं को वाणी प्राप्त हुई थी। सरस्वती देवी ने जीवों को वाणी के साथ-साथ विद्या और बुद्धि भी दी। इसलिए बसंत पंचमी के दिन हर घर में सरस्वती की पूजा भी की जाती है। दूसरे शब्दों में बसंत पंचमी का दूसरा नाम सरस्वती पूजा भी है। मां सरस्वती को विद्या और बुद्धि की देवी माना गया है।
देशभर में विद्यार्थी, लेखक और कलाकार सरस्वती देवी की मूर्ती के सामने पुस्तकें, कलम और वाद्ययंत्र रखकर पूजा करते हैं। लोग प्राकृतिक जल स्रोतों, बाबलियों और झरनों में स्नान कर पीले वस्त्र धारण करते हैं और मंदिरों में पूजा-अर्चना करते हैं। पूजा के लिए पीले रंग के चावल, पीले लड्डू और केसर वाले दूध का इस्तेमाल किया जाता है। स्कंद पुराण के अनुसार पूजा के लिए सफेद फूल, चन्दन, श्वेत वस्त्र से देवी सरस्वती जी की पूजा करना अच्छा होता है। माता सरस्वती के पूजन के लिए अष्टाक्षर मूल मंत्र “श्रीं ह्रीं सरस्वत्यै स्वाहा” का जाप करना उपयोगी होता है। वहीं रात में दोबार धुप और दीपक जलाकर 108 बार मां सरस्वती के नाम का जाप करना और पूजा के बाद देवी को दण्डवत प्रणाम करना चाहिए।

ટિપ્પણીઓ નથી:

ટિપ્પણી પોસ્ટ કરો

thank you for comment

whatsaap

Join WhatsApp Group Join Now